दो दशकों में केंद्रीय जांच एजेंसियों के निशाने पर आए विपक्षी नेताओं की संख्या तेजी से बढ़ती जा रही है। सोनिया गांधी से लेकर मनीष सिसोदिया तक, अनेक बड़े नेता जांच एजेंसी के फेर में आ चुके हैं।
यूपीए के शासनकाल (2004-2014) में सीबीआई ने जिन नेताओं के खिलाफ मामला दर्ज किया, उनमें विपक्ष के नेताओं की संख्या लगभग 60 फीसदी थी। उस उस दौरान 72 नेताओं को सीबीआई जांच का सामना करना पड़ा। पूर्व पीएम डॉ. मनमोहन सिंह की सरकार में केंद्रीय एजेंसी ‘ईडी’ के 112 छापे पड़े थे।
यूपीए सरकार में सीबीआई ने 2जी स्पेक्ट्रम, राष्ट्रमंडल खेल और कोयला ब्लॉक आवंटन जैसे कई बड़े मामलों की जांच की थी। मनमोहन सिंह सरकार के दौरान सीबीआई ने लगभग 43 विपक्षी नेताओं से पूछताछ की थी।
मोदी सरकार के दौरान कांग्रेस समेत दूसरे कई विपक्षी दलों के नेता, जांच एजेंसियों के निशाने पर आ चुके हैं। इनमें विपक्षी नेताओं की संख्या सर्वाधिक है। गत वर्ष कांग्रेस नेता एवं मौजूदा पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने कहा था, केंद्र सरकार अपनी जांच एजेंसियों की मदद से विपक्ष को एकत्रित नहीं होने दे रही।
विपक्षी दल, सरकार को घेरने का प्रयास करते हैं, उन्हें टारगेट पर ले लिया जाता है। कांग्रेस के बड़े नेता एवं पूर्व केंद्रीय मंत्री पवन बंसल भी ईडी की पेशी भुगत चुके हैं। पश्चिम बंगाल सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे पार्थ चटर्जी, ईडी के शिकंजे में फंस चुके हैं।