Tuesday, November 26, 2024 at 5:34 PM

लाला लाजपत राय ने हिला दी थी अंग्रेजी सरकार की नींव

महान लेखक, स्वतंत्रता सेनानी और प्रखर राजनीतिज्ञ लाला लाजपत राय का जन्म 28 जनवरी, 1865 को हुआ था। उनका जन्म पंजाब के मोगा जिले में हुआ था। रणबांकुरों की धरती पंजाब में जन्में लाला लाजपत राय ने देश के स्वतंत्रता आंदोलन में अहम भूमिका निभाई थी। लाला लाजपत राय कई बड़े आंदोलनों में शामिल हुए थे। साइमन कमीशन के खिलाफ किए गए आंदोलन से उन्हें एक अलग पहचान मिली। पंजाब केसरी के रूप में प्रसिद्ध लाला लाजपत राय भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के प्रमुख नेताओं में शामिल थे। लाला लाजपत राय, बाल गंगाधर तिलक और बिपिन चंद्र पाल की तिकड़ी लाल-बाल-गोपाल के नाम से देशभर में लोकप्रिय थी।

साल 1920 में कांग्रेस कलकत्ता (कोलकाता) विशेष सत्र के दौरान लालाजी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए थे। उन्होंने पंजाब नेशनल बैंक और लक्ष्मी बीमा कंपनी की स्थापना की। लाला लाजपत राय ने साइमन कमीशन के खिलाफ आंदोलन में भाग लिया। जब वह 3 फरवरी 1928 को भारत आया, तो पूरे देश में आंदोलन भड़क उठा। उस दौरान लाला लाजपत राय ने लाहौर में आंदोलन का नेतृत्व किया था।

उनके आंदोलन से अंग्रेजों की सरकार हिल गई थी। अंग्रेजों ने आंदोलन करने वालों पर लाठियां बरसाई, जिसमें लाला लाजपत राय घायल हो गए। इसके बाद वह 17 नवंबर 1928 को शहीद हो गए। लाला लाजपत राय की मौत की खबर फैलते ही देशभर में गुस्सा भर गया और लोग उत्तेजित हो उठे। भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, राजगुरु, सुखदेव समेत अन्य क्रांतिकारियों ने इसका बदला लेने का प्रण लिया। आखिरकार क्रांतिकारियों ने अपना प्रण पूरा किया और 17 दिसंबर 1928 को ब्रिटिश पुलिस के अधिकारी सांडर्स को गोलियों से उड़ा दिया।

बेहद कम लोग जानते हैं कि लाला लाजपत राय ने ही अंग्रेजों भारत छोड़ो का नारा दिया था। उन्होंने साइमन कमीशन का विरोध करते हुए यह नारा दिया था। लाला लाजपात राय ने अपने आखिरी भाषण में कहा था कि मेरे शरीर पर पड़ी एक-एक चोट ब्रिटिश साम्राज्य के ताबूत की कील बनेगी। उनके यह शब्द बाद में सही साबित हुए। इसके बाद अंग्रेजी हुकूमत की उल्टी गिनती शुरू हो गई।

लाला लाजपत राय के सफल आंदोलन के बाद बिट्रिश शासन से मुक्त होने का मार्ग प्रशस्त हुआ था। उन्होंने असहयोग आंदोलन का नेतृत्व किया था, जो पंजाब में सफल साबित हुआ। इस आंदोलन के सफल होने के बाद उन्हें पंजाब केसरी और पंजाब का शेर के नाम से जाना जाने लगा। वह खासकर क्रांतिकारियों के प्रेरणास्रोत रहे। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के गरम दल के तीन प्रमुख नेताओं लाल-बाल-पाल में से एक थे।

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