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लाला लाजपत राय के जीवन से जुड़ी कुछ अनसुनी बातें

‘पंजाब केसरी’ कहे जाने वाले लाला लाजपत राय भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख नायकों में से एक थे। उनकी भारत को आजादी दिलाने में अहम भूमिका थी। इसके साथ ही उन्होंने एक आदर्श नेता के तौर अपनी पहचान बनाई। लाला लाजपत राय की आज 159वीं जयंती है। इस मौके पर हम आपको उनकी कुछ खास बातें बताते हैं जिसके बारे में शायद ही लोग जानते होंगे।

लाला लाजपत राय ने एक राष्ट्रवादी राजनेता, वकील और लेखक के रूप में भारत को अपना अमूल्य योगदान दिया। वह आर्य समाज से प्रभावित थे जिसका उन्होंने देशभर में प्रचार प्रसार किया है। पंजाब में उनके कार्यों की वजह से उन्हें पंजाब केसरी की उपाधि दी गई। लाला लाजपत राय ने स्वामी दयानंद के साथ मिलकर आर्य समाज की स्थापना की। वह एक बैंकर भी थे, जिन्होंने देश में एक स्वदेशी बैंक की स्थापना की थी, जिसे हम आज पंजाब नेशनल बैंक के नाम से जानते हैं। लाला लाजपत राय आज भी करोड़ों युवाओं के प्रेरणा स्रोत हैं।

ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ लाला लाजपत राय को बर्मा की जेल में भी रहना पड़ा। जेल से वापस आने के बाद साल 1970 में वह अमेरिका के दौरे पर गए और प्रथम विश्व युद्ध के दौरान वापस आए। 28 जनवरी, 1856 को जन्में लाला राजपत राय के पिता राधाकृष्ण अग्रवाल एक अध्यापक थे और प्रसिद्ध लेखक थे। उनकी माता गुलाब देवी एक गृहणी थीं। वह एक मेधावी छात्र रहे। उन्होंने अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद वकालत की पढ़ाई की और हिसार से वकालत शुरू की।

हालांकि अंग्रेजी सरकार की न्याय व्यवस्था को देखकर उनके मन में क्रोध पैदा हो गया। इसकी वजह से वह वकालत छोड़कर बैंकिग क्षेत्र में आ गए और अपनी आजीविका चलाने के लिए बैंकों का नवाचार शुरू किया। बाल गंगाधर तिलक के बाद वह उन शुरुआती नेताओं में शामिल थे, जिन्होंने पूर्ण स्वराज्य की मांग उठाई थी।

1905 में बंगाल विभाजन के बाद वह सुरेंद्रनाथ बनर्जी और विपिनचंद्र पाल जैसे आंदोलनकारियों से मिल गए और अंग्रेजी सरकार के इस फैसले का विरोध किया। उन्होंने पूरे देश में स्वदेशी आंदोलन को बढ़ाने में मदद की। उनकी लोकप्रियता को देखकर अंग्रेजों के अंदर डर पैदा हो गया था। इसकी वजह से अंग्रेजों ने लाला लाजपत राय को गिरफ्तार कर लिया और बर्मा के जेल में डाल दिया।

पंजाब केशरी नाम से हुए मशहूर

ब्रिटिश राज के दौरान लाला लाजपत राय की बात को पंजाब में हर कोई मानता था। पंजाब में उनके प्रभाव की वजह से ही उन्हें पंजाब केशरी यानी पंजाब का शेर कहा जाता था। पंजाब में ब्रिटिश राज के खिलाफ लाला लाजपत राय ने आवाज उठाई थी। 17 नवंबर 1928 को लाहौर में साइमन कमिशन के खिलाफ विरोध के दौरान लाठी चार्ज में वह घायल हो गए, जिसके बाद उनका निधन हो गया। उनके निधन के बाद ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ देशभर में आक्रोष पैदा हो गया। महान क्रांतिकारी भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु ने लालाजी की मौत का बदला लेने के लिए अंग्रेज पुलिस अधिकारी सांडर्स को 17 दिसंबर 1928 को गोली से उड़ा दिया था।

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