गोस्वामी तुलसीदास द्वारा लिखित महाकाव्य रामचरितमानस को लेकर विवाद बिहार से शुरू हुआ था लेकिन अब इसके चलते उत्तर प्रदेश की राजनीति भी गरमाई हुई है। विवाद की शुरुआत बिहार के शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर के एक बयान से हुई थी।
यूपी में यह विवाद समाजवादी पार्टी के नेता स्वामी प्रसाद मौर्य के एक बयान से उपजा।जब विवाद हुआ को अखिलेश यादव अपने नेता स्वामी प्रसाद मौर्य के समर्थन में आ गए। अखिलेश द्वारा मौर्य का समर्थन इस बात का संकेत देता है कि सपा नया राजनीतिक आधार तलाश रही है और वह आधार अति पिछड़ा वर्ग हो सकता है।
मौर्य की टिप्पणियों पर रक्षात्मक होने के बजाय, समाजवादी पार्टी खुद को सबसे पिछड़े वर्गों की हितैषी के रूप में पेश कर रही है। इसे दो उदाहरणों से समझा जा सकता है। सपा प्रमुख ने हाल ही में भाजपा पर हमला बोलते हुए कहा कि बीजेपी के लोग पिछड़ों को शूद्र मानते हैं।
उन्होंने कहा, ‘‘भाजपा के लोग सोचते हैं कि पिछड़े लोग शूद्र हैं।” दूसरा उदाहरण मौर्य की पदोन्नति है। दरअसल, रविवार को, एक महत्वपूर्ण संदेश देते हुए, बसपा से भाजपा और फिर सपा नेता बने मौर्य को पदोन्नति देकर सपा का राष्ट्रीय महासचिव बनाया गया।