नई दिल्ली: देश में काफी समय से सप्ताह में कितने घंटे काम करने चाहिए इस पर बहस हो चुकी है। वहीं अब इस मामले में एक नया नाम जुड़ गया है। लोगों को अपने शरीर की जरूरतों को समझना चाहिए और जरूरत पड़ने पर आराम लेना चाहिए, क्योंकि लगातार अधिक काम करने से थकावट (बर्नआउट) और कार्यक्षमता में गिरावट हो सकती है। यह सलाह विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की पूर्व मुख्य वैज्ञानिक और स्वास्थ्य मंत्रालय की सलाहकार डॉ. सौम्या स्वामीनाथन ने दी है।

लंबी वर्कवीक से सेहत पर असर
डॉ. सौम्या स्वामीनाथन ने बताया कि हर व्यक्ति की सहनशक्ति अलग होती है, लेकिन शरीर संकेत देता है कि कब उसे आराम की जरूरत है। उन्होंने कहा कि कुछ समय के लिए ज्यादा काम करना संभव है, जैसा कि कोविड-19 महामारी के दौरान देखा गया था, लेकिन लंबे समय तक ऐसा करना संभव नहीं है। उन्होंने कहा ‘आप कुछ महीनों तक बहुत मेहनत कर सकते हैं। कोविड के समय हम सभी ने ऐसा किया। हमने कम सोकर, लगातार चिंता में रहकर काम किया, खासकर स्वास्थ्यकर्मियों ने 24 घंटे ड्यूटी की। इसका असर यह हुआ कि कई लोग बर्नआउट का शिकार हुए और कुछ ने तो पेशा ही छोड़ दिया। इसलिए यह लंबी अवधि के लिए संभव नहीं है’।

गुणवत्ता ज्यादा जरूरी, न कि घंटे- स्वामीनाथन
उन्होंने मानसिक स्वास्थ्य और आराम की अहमियत पर जोर दिया। उन्होंने कहा, ‘शरीर को नींद की जरूरत होती है। मानसिक रूप से भी ब्रेक लेना जरूरी है, ताकि आपकी सोचने-समझने की क्षमता बनी रहे’। डॉ. सौम्या स्वामीनाथन ने यह भी बताया कि काम की गुणवत्ता ज्यादा मायने रखती है, न कि सिर्फ काम के घंटे। उन्होंने कहा, ‘आप 12 घंटे डेस्क पर बैठ सकते हैं, लेकिन हो सकता है कि 8 घंटे के बाद आपकी उत्पादकता घट जाए। इसलिए सिर्फ घंटों को गिनने से कुछ नहीं होगा, बल्कि काम की गुणवत्ता पर ध्यान देना जरूरी है’।

70-90 घंटे वर्कवीक पर बहस
हाल ही में लार्सन एंड टुब्रो के चेयरमैन एस. एन. सुब्रह्मण्यन ने कहा था कि कर्मचारियों को हफ्ते में 90 घंटे काम करना चाहिए। इससे पहले, इन्फोसिस के को-फाउंडर नारायण मूर्ति ने 70 घंटे की वर्कवीक का सुझाव दिया था। इसी महीने, नीति आयोग के पूर्व सीईओ अमिताभ कांत ने कहा कि भारत को चार ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था से 30 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंचने के लिए कड़ी मेहनत करनी होगी। उन्होंने कहा, ‘अगर हमें 2047 तक 30 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनानी है, तो हमें 80-90 घंटे काम करना होगा। सिर्फ मनोरंजन या फिल्मी सितारों की राय मानने से यह संभव नहीं होगा’।