Saturday, July 27, 2024 at 5:21 AM

बजट पेश होने से पहले जान लें कुछ शब्दों का मतलब, आसानी से समझ पाएंगे वित्त मंत्री का भाषण

कल यानी एक फरवरी 2024 को देश का अंतरिम बजट पेश होगा। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण इसे संसद में पेश करेंगी। भले ही ये अंतरिम बजट होगा, लेकिन देशवासियों को इससे बड़ी ही उम्मीदें हैं। हर कोई अपने लिए कुछ न कुछ इस बजट में ढूंढता हुआ नजर आता है। कोई टैक्स में छूट चाहता है, तो कोई सामान सस्ता होना चाहता है आदि। हालांकि, सभी को उम्मीद है कि सरकार की तरफ से अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए कई बड़ी घोषणाएं इस अंतरिम बजट में हो सकती हैं। वहीं, जब वित्त मंत्री बजट पेश करेंगी, तो इस दौरान वे कई ऐसे शब्दों को बोल सकती हैं, जिसे आम लोगों के लिए समझना थोड़ा मुश्किल हो सकता है। पर आपको चिंता करने की जरूरत नहीं है, क्योंकि यहां आप ऐसे ही कुछ शब्दों का मतलब पहले ही जान सकते हैं जिससे आपको बजट को समझने में आसानी हो सकती है। तो चलिए जानते हैं ये कौन से शब्द हैं…

जानें शब्दों का मतलब:-
अंतरिम बजट, जैसा कि हम सभी जानते हैं कि कल अंतरिम बजट पेश होगा। पर कई लोग इसका मतलब नहीं जानते हैं। इसका मतलब होता है कि चुनाव से पहले जो बजट पेश किया जाता है उसे अंतरिम बजट पेश किया जाता है। चुनाव के कारण जरूरी वित्तीय कार्यों के प्रबंधन के लिए सरकार इसे संसद में पेश करती है। वहीं, जब नई सरकार का गठन होता है, तो फिर वो पूर्ण बजट पेश करती है।

गैर योजना खर्च, में रक्षा, डाक घाटा, पेंशन, ब्याज की अदायगी, सब्सिडी, सार्वजनिक उपक्रमों को दिए जाने वाले कर्ज और राज्यों, केंद्र शासित प्रदेशों और विदेशी सरकारों को दिए जाने वाले कर्ज और आर्थिक सेवाएं जैसी चीजें शामिल होती हैं। पूंजी भुगतान, किसी तरह की परिसंपत्ति खरीदने के लिए सरकार को जो भी भुगतान देना होता है वो पूंजी भुगतान कहलाता है।

बजट आकलन, आपने देखा होगा या आप कल बजट पेश होने के दौरान देखेंगे कि वित्तमंत्री बजट प्रस्ताव जब रखेंगी, तब वे कई तरह के कर और शुल्क के माध्यम से होने वाली आमदनी और योजनाओं व अन्य चीजों के खर्चों का लेखा पेश करेंगी। इन्हीं सब चीजों का मतलब बजट आकलन होता है।

जीरो बजट, इस शब्द से तात्पर्य होता है कि पिछले वित्त वर्ष के खर्चे या बैलेंस को कैरी फॉरवर्ड यानी आगे नहीं बढ़ाया जाता है। आप इसे ऐसे समझिए कि सरकार ने किसी योजना के लिए मंत्रालय या सासंदों को पैसे दिए। वहीं, मंत्रालय या सांसद उस मिले हुए पैसे का कुछ ही हिस्सा खर्च कर पाएं। ऐसे में बचे हुए पैसे को उन्हें दोबारा से आवंटित करना जरूरी नहीं है।

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