गायों के दूध का प्रदेश का इकलौता प्लांट शुरू कर गोपालकों को आमदनी की पहल हुई थी। दूध बेचकर आमदनी होती तो गोवंशों को खुला छोड़ने की आदत पर भी रोक लगती। सरकारी सुस्ती के आगे सभी कोशिश धरी रह गई।
कई गोपालकों की रकम अटकी है। खुद वहां के स्टाफ को देने भर को भी पैसे नहीं हैं। आठ साल पहले 2015 में सपा शासन में तिर्वा तहसील के उमर्दा में काऊ मिल्क प्लांट की स्थापना हुई थी।
गाय के दूध को खरीदकर उसकी पैकेजिंग कर बाजार में बेचने की यह अपने आप में अनूठी पहल थी। किसानों से गाय का दूध खरीद कर उसकी पैकेजिंग कर बाजार तक पहुंचाने की क्षमता वाले इस प्लांट को शुरुआती दिनों में तो सबकुछ ठीक रहा।
पिछले करीब दो साल से यहां सिर्फ एक से दो हजार लीटर दूध ही पहुंच रहा था। उसका भी भुगतान नहीं हो पा रहा था। नतीजा यह हुआ कि पहले तो दूध की कमी शुरू हुई, फिर मशीनों को बंद करना पड़ा और उसके बाद कई कर्मचारियों की छंटनी करनी पड़ी।
जिन गोपालकों से दूध लिया गया था, उन्हें रुपये देने में भी मुश्किल खड़ी हो गई। अब पिछले करीब चार महीने से प्लांट पूरी तरह से बंद पड़ा है। यहां के जिम्मेदार अपनी बात अफसरों से लेकर शासन तक पहुंचा रहे हैं, लेकिन सुनवाई नहीं हो रही है।