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सूडान ने जब पहली बार कराया था संसदीय चुनाव, तब भारत के CEC को किया था आमंत्रित; पढ़ें दिलचस्प किस्से

सन् 1947 में ब्रितानी हुकूमत से आजादी मिलने के बाद पहली बार 1951-52 में भारत में आम चुनाव हुए थे। यह चुनाव सिर्फ इसलिए अहम नहीं था कि यह स्वतंत्र भारत का पहला चुनाव था बल्कि इसलिए भी बेहद अहम था क्योंकि सारी दुनिया की निगाहें इस पर टिकी थीं। लोकसभा के साथ-साथ राज्यों की विधानसभाओं के भी चुनाव होने थे। भारत के मुख्य चुनाव आयुक्त (सीईसी) सुकुमार सेन के कुशल नेतृत्व में जब चुनाव सफलतापूर्वक संपन्न हुए तो दुनिया हैरान रह गई। इन सबसे सूडान भी काफी आकर्षित हुआ। उसने सन् 1953 में अपना पहला संसदीय चुनाव कराने के लिए सुकुमार सेन को आमंत्रित किया था।

14 माह का समय लिया था सेन ने
निर्वाचन आयोग के अभिलेखीय रिकॉर्ड में इस प्रक्रिया का पूरा ब्योरा दर्ज है। रिकॉर्ड के अनुसार सेन ने सूडान में चुनाव कराने में 14 माह का वक्त लगाया और इसके लिए उन्होंने भारतीय चुनाव से जुड़े कायदे कानूनों का सहारा लिया। सेन ने उन नियमों में सूडान के अनुरूप परिवर्तन भी किए। दस्तावेजों में यह दर्ज है कि पहले आम चुनाव की सफलता ने भारत में लोकतंत्र की ठोस नींव रखी।

कई देशों ने मांगी थी जानकारी
रिकॉर्ड में कहा गया, ‘पश्चिम एशिया, अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका के कई देशों ने चुनाव के बारे में विस्तृत जानकारी मांगी थी। मुख्य चुनाव आयुक्त सुकुमार सेन को सूडान में चुनाव कराने के लिए एक अंतरराष्ट्रीय आयोग का अध्यक्ष चुना गया था। सूडान पूर्व में ब्रिटेन का उपनिवेश था।’

भारतीय कानूनों में थोड़ा किया था बदलाव
इसमें आगे बताया गया है कि, सेन ने सूडान में अच्छी तरह चुनाव हो इसके लिए उन्होंने वहां 14 महीने बिताए। इस दौरान उन्होंने आंशिक रूप से भारतीय कानूनों और प्रक्रियाओं को संशोधित किया, ताकि उस अफ्रीकी-अरब राष्ट्र की आवश्यकता के अनुरूप चुनाव हो सकें। सूडान में सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार पर आधारित चुनाव केवल दो प्रतिशत की साक्षरता दर के बावजूद सफल रहे

पद्म भूषण से सम्मानित
भारत सरकार ने 1954 में जब नागरिक पुरस्कारों की शुरुआत की तो सेन को उनके योगदान के लिए पद्म भूषण से सम्मानित किया गया। सेन भारतीय सिविल सेवा में अधिकारी थे और पश्चिम बंगाल के मुख्य सचिव थे, जब उन्हें भारत के पहले मुख्य निर्वाचन आयुक्त के रूप में नियुक्त किया गया था। लोकतांत्रिक राष्ट्र के रूप में भारत की साख को तब और अंतरराष्ट्रीय समर्थन मिला जब लोकसभा अध्यक्ष जीवी मावलंकर को 1956 में जमैका में राष्ट्रमंडल संसदीय संघ की आम परिषद का अध्यक्ष चुना गया। यह पहली बार था जब किसी एशियाई सदस्य को अध्यक्ष के लिए चुना गया था।

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