नई दिल्ली:विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने लोकसभा में साफ किया कि 22 अप्रैल से 17 जून के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बीच कोई सीधी बातचीत नहीं हुई। जयशंकर ने यह भी खुलासा किया कि पाकिस्तान पर भारत के जवाबी हमलों के बाद भारत को ऐसे फोन कॉल आए, जिनसे संकेत मिलने लगे थे कि पाकिस्तान अब हार मान चुका है। हालांकि, भारत ने साफ किया कि ऐसा कोई भी अनुरोध पाकिस्तान के सैन्य अभियान महानिदेशक (DGMO) की ओर से औपचारिक रूप से आना चाहिए था। इसलिए हमने पाकिस्तान की ओर से गुहार लगाए जाने के बाद ही अपनी कार्रवाई पर ब्रेक लगाया।
सदन में ऑपरेशन सिंदूर पर बोलते हुए विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर ने कहा कि पहलगाम हमले के बाद एक स्पष्ट, मजबूत और दृढ़ संदेश भेजना जरूरी था। हमारी धैर्य की सीमाएं पार की गई थीं, सीमा लांघ दी गई थी और हमें यह स्पष्ट करना था कि इसके गंभीर परिणाम होंगे। पहला कदम- जो उठाया गया, वह यह था कि 23 अप्रैल को सुरक्षा मामलों की कैबिनेट समिति की बैठक हुई। उस बैठक में यह निर्णय लिया गया कि-
1. 1960 की सिंधु जल संधि तत्काल प्रभाव से तब तक स्थगित रहेगी जब तक कि पाकिस्तान सीमा पार आतंकवाद को अपना समर्थन विश्वसनीय और अपरिवर्तनीय रूप से त्याग नहीं देता।
2. एकीकृत चेक पोस्ट अटारी को तत्काल प्रभाव से बंद कर दिया जाएगा।
3. एसएआरसी वीजा छूट योजना के तहत यात्रा कर रहे पाकिस्तानी नागरिकों को अब ऐसा करने की अनुमति नहीं होगी।
4. पाकिस्तानी उच्चायोग के रक्षा, नौसेना और वायु सलाहकारों को अवांछित व्यक्ति घोषित किया जाएगा।
5. उच्चायोग की कुल संख्या 55 से घटाकर 30 कर दी जाएगी।
विदेश मंत्री ने यह भी कहा, ‘यह बिल्कुल स्पष्ट था कि सुरक्षा मामलों की कैबिनेट समिति की ओर से अनुमोदित पहले कदमों के बाद पहलगाम हमले पर भारत की प्रतिक्रिया यहीं नहीं रुकेगी। कूटनीतिक दृष्टिकोण से, विदेश नीति के दृष्टिकोण से, हमारा काम पहलगाम हमले की वैश्विक समझ को आकार देना था। हमने जो करने की कोशिश की, वह यह था कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय के सामने पाकिस्तान की ओर से सीमा पार आतंकवाद के लंबे समय से इस्तेमाल को उजागर किया जाए। हमने पाकिस्तान में आतंकवाद के इतिहास को उजागर किया और बताया कि कैसे इस हमले का उद्देश्य जम्मू-कश्मीर की अर्थव्यवस्था को निशाना बनाना और भारत के लोगों के बीच सांप्रदायिक कलह फैलाना था।’
विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर ने कहा, ‘हमारी कूटनीति का केंद्र बिंदु संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद था। हमारे लिए चुनौती यह थी कि इस विशेष समय में पाकिस्तान सुरक्षा परिषद का सदस्य है। सुरक्षा परिषद में हमारे दो लक्ष्य थे, पहला- सुरक्षा परिषद से जवाबदेही के लिए समर्थन पाना और दूसरा- इस हमले को अंजाम देने वालों को न्याय के कटघरे में लाना। मुझे यह कहते हुए खुशी हो रही है कि यदि आप 25 अप्रैल के सुरक्षा परिषद के बयान को देखें तो सुरक्षा परिषद के सदस्यों ने इस आतंकवादी हमले की कड़े शब्दों में निंदा की थी। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि आतंकवाद अपने सभी रूपों और अभिव्यक्तियों में अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा के लिए सबसे गंभीर खतरों में से एक है। सबसे महत्वपूर्ण बात परिषद ने आतंकवाद के इस निंदनीय कृत्य के अपराधियों, आयोजकों, वित्तपोषकों और प्रायोजकों को जवाबदेह ठहराने और उन्हें न्याय के कटघरे में लाने की आवश्यकता पर जोर दिया।