Friday, September 20, 2024 at 6:33 AM

केवल रक्षाबंधन के दिन खुलते हैं इस मंदिर के कपाट, भाई-बहन कर सकते हैं भगवान के दर्शन

भारत के मंदिरों की कहानियां, उनकी अद्वितीय संरचना, और मंदिरों से जुड़े चमत्कारिक अनुभव आपको एक रोमांचक सफर का पूरा आनंद देंगे। देवभूमि उत्तराखंड में आपको कई अद्भुत कहानियां और चमत्कारी मंदिर देखने को मिलेंगे। सुंदर पहाड़ों के बीच बसे इन मंदिरों में एक ऐसा मंदिर भी है जो सालभर बंद रहता है। यह मंदिर साल में सिर्फ एक दिन, एक खास मौके पर, केवल 12 घंटों के लिए ही खोला जाता है। अगर आप सालभर बंद रहने वाले इस मंदिर के बारे में जानना चाहते हैं और इसके दर्शन करना चाहते हैं, तो इस रोमांचक सफर के बारे में विस्तार से जानिए।

चमोली में स्थित मंदिर 364 दिन बंद रहता है

उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित बंशी नारायण मंदिर एक लोकप्रिय धार्मिक स्थल है। यह मंदिर सालभर बंद रहता है, जिससे भक्त इसकी नियमित पूजा अर्चना नहीं कर पाते। हालांकि, मंदिर के कपाट एक विशेष दिन पर केवल 12 घंटे के लिए खोले जाते हैं। इस खास दिन पर मंदिर के खुलते ही श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ पड़ती है, जो यहां पूजा अर्चना करते हैं और भगवान बंशी नारायण का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।

बंशी नारायण मंदिर के कपाट कब खुलते हैं?

चमोली में स्थित बंशी नारायण मंदिर के कपाट श्रद्धालुओं के लिए केवल रक्षाबंधन के दिन खोले जाते हैं। इस दिन, जब तक सूर्य की रोशनी रहती है, मंदिर खुला रहता है। सूर्यास्त होते ही मंदिर के कपाट फिर से बंद कर दिए जाते हैं। सुबह से ही दूर-दराज से श्रद्धालु मंदिर के दर्शन के लिए यहां पहुंचने लगते हैं और बेसब्री से कपाट खुलने का इंतजार करते हैं।

बंशी नारायण मंदिर से जुड़ी कथा

यह मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है। मान्यता है कि भगवान विष्णु अपने वामन अवतार से मुक्ति पाने के बाद सबसे पहले इसी स्थान पर आए थे। तब देव ऋषि नारद ने यहां भगवान नारायण की पूजा अर्चना की थी। इसलिए, मान्यता है कि केवल एक दिन के लिए, भगवान के दर्शन के लिए मंदिर के कपाट खोले जाते हैं।

रक्षाबंधन पर ही क्यों खुलता है मंदिर?

इस मंदिर के रक्षाबंधन के दिन खुलने की कथा राजा बलि और भगवान विष्णु से जुड़ी हुई है। कथा के अनुसार, राजा बलि ने भगवान विष्णु से उनका द्वारपाल बनने का आग्रह किया था, जिसे भगवान ने स्वीकार कर लिया और वे राजा बलि के साथ पाताल चले गए। कई दिनों तक जब माता लक्ष्मी ने भगवान विष्णु को कहीं नहीं पाया, तो उन्होंने नारद जी के सुझाव पर श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन राजा बलि को रक्षा सूत्र बांधकर भगवान विष्णु को मुक्त करने का आग्रह किया। इसके बाद, राजा बलि ने भगवान विष्णु को माता लक्ष्मी के साथ इसी स्थान पर मिलवाया।

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