नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि अदालतें विधायिका को किसी खास तरीके से कानून बनाने का निर्देश नहीं दे सकतीं। जस्टिस बी.आर. गवई और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की बेंच ने दिल्ली हाईकोर्ट के फरवरी 2024 के आदेश के खिलाफ दायर एक जनहित याचिका (पीआईएल) पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की।
बेंच ने याचिका पर सुनवाई से इनकार किया और कहा, संसद ने हर पहलू पर विचार करने के बाद एक नया कानून बनाया है। प्रारंभिक अधिकार क्षेत्र में न तो हाईकोर्ट और न ही सुप्रीम कोर्ट विधायिका को किसी खास तरीके से कानून बनाने का निर्देश दे सकता है।
जनहित याचिका में जिला अदालतों या पुलिस को यह निर्देश देने की मांग की गई थी कि वे शिकायतकर्ता या पीड़ित को आरोपपत्र की एक प्रति निशुल्क उपलब्ध कराएं। केंद्र की ओर से पेश वकील ने भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस), 2023 की धारा 230 का हवाला देते हुए कहा कि यह याचिका अप्रासंगिक है। उन्होंने कहा, धारा 230 के अनुसार अगर कोई मामला पुलिस रिपोर्ट पर आधारित है, तो मजिस्ट्रेट को आरोपी और पीड़ित को बिना किसी शुल्क के दस्तावेजों की प्रति देना अनिवार्य है। इसमें पुलिस रिपोर्ट और प्राथमिक सूचना रिपोर्ट (एफआईआर) शामिल हैं।
याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि बीएनएसएस की धारा 230 में शिकायतकर्ता या पीड़ित के सुनवाई के अधिकार से जुडा कोई प्रावधान नहीं है। पीआईएल में यह भी आग्रह किया गया था कि सभी जिला अदालतों को निर्देश दिया जाए कि वे मामले की शुरुआती सुनवाई के समय शिकायतकर्ताओं या पीड़ितों को नोटिस जारी करें, ताकि वे अपने अधिकार का उपयोग कर सकें और मुकदमे से पहले कार्रवाई में भाग ले सकें।