नई दिल्ली: बिहार में मतदाता सूची पुनरीक्षण की मांग को लेकर विपक्ष सरकार पर हमलावर है। इसे लेकर बिहार विधानसभा और संसद में हंगामा जारी है। अब चुनाव आयोग ने बिहार मतदाता सूची पुनरीक्षण मामले पर बयान जारी किया है और सवाल किया है कि क्या चुनाव आयोग को फर्जी मतदाताओं को भी मतदाता सूची में शामिल कर लेना चाहिए?
‘क्या फर्जी मतदाताओं को मतदान करने देना चाहिए’
चुनाव आयोग ने बिहार मतदाता सूची पुनरीक्षण मामले पर हो रही आलोचना को लेकर कहा कि ‘भारत का संविधान, भारतीय लोकतंत्र की मां है। तो क्या विरोध से डरकर चुनाव आयोग को कुछ लोगों के दबाव में भ्रमित हो जाना चाहिए और उन लोगों का रास्ता साफ कर देना चाहिए, जो मृत मतदाताओं के नाम पर फर्जी मतदान करते हैं? जो मतदाता स्थायी तौर पर पलायन कर गए हैं, जो मतदाता फर्जी या विदेशी हैं, क्या उन्हें संविधान के खिलाफ जाकर, पहले बिहार में और फिर पूरे देश में मतदान करने दें?’
चुनाव आयोग ने पूछा कि ‘क्या हमें निष्पक्ष प्रक्रिया के जरिए मतदाता सूची को तैयार नहीं करना चाहिए? मतदाता सूची ही निष्पक्ष चुनाव और मजबूत लोकतंत्र का आधार होती है। इन सभी सवालों पर हम सभी भारतीयों को गंभीरता से और राजनीतिक वैचारिकता से परे जाकर विचार करना चाहिए। इन सभी मुद्दों पर अब गंभीरता से विचार करने का सही समय आ गया है।’
भारत निर्वाचन आयोग ने बताया है कि बिहार में मतदाता सूची संबंधी आदेश के पैरा 7(5) के तहत पृष्ठ 3 पर कहा गया है कि कोई भी मतदाता या कोई मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल को 1 अगस्त से लेकर 1 सितंबर तक एक महीने का समय मिलेगा ताकि वे किसी भी पात्र मतदाता का नाम मतदाता सूची में शामिल करवा सकें, अगर उसका नाम बीएलओ/बीएलए द्वारा छोड़ दिया गया हो। साथ ही किसी भी मतदाता का नाम कटवा सकते हैं अगर बीएलओ/बीएलए द्वारा गलत तरीके से नाम शामिल किया गया हो।