बंगलूरू:  कर्नाटक में अनुसूचित जाति यानी एससी वर्ग के लिए ‘आंतरिक आरक्षण’ की बहस अब निर्णायक मोड़ पर पहुंच चुकी है। राज्य की जस्टिस नागमोहन दास आयोग ने सोमवार को मुख्यमंत्री सिद्धारमैया को 1,766 पन्नों की रिपोर्ट सौंपी है। इसमें एससी वर्ग के भीतर आरक्षण के विभाजन की सिफारिश की गई है। गृह मंत्री जी परमेश्वर ने साफ किया कि यह रिपोर्ट अब राज्य कैबिनेट के सामने रखी जाएगी और कैबिनेट जो भी निर्णय लेगी, उसे लागू किया जाएगा।

ग्रामीण विकास मंत्री प्रियांक खरगे ने कहा कि कांग्रेस ने अपने घोषणापत्र में जो वादा किया था, उसे निभाया है। उन्होंने कहा कि यह रिपोर्ट एक सर्वे के आधार पर तैयार की गई है। हालांकि कुछ शहरी क्षेत्रों के लोग सर्वे में शामिल नहीं हो सके, लेकिन व्यापक रूप से डाटा जुटाया गया है। रिपोर्ट पर अब कैबिनेट बैठक में विचार होगा और उसके बाद फैसला लिया जाएगा।

जरूरी आंकड़ों के साथ तैयार हुई रिपोर्ट
रिपोर्ट सौंपते हुए जस्टिस नागमोहन दास ने कहा कि लंबे समय से उनका मानना रहा है कि अनुसूचित जाति समुदाय के भीतर भी आरक्षण का बंटवारा होना चाहिए, ताकि सबसे वंचित तबकों तक इसका लाभ पहुंचे। उन्होंने बताया कि यह सर्वे मोबाइल ऐप के जरिए किया गया और सभी आवश्यक आंकड़ों के साथ यह रिपोर्ट तैयार की गई है।

सुप्रीम कोर्ट ने राज्य को दी छूट
आंतरिक आरक्षण की मांग करीब तीन दशकों से की जा रही थी। यह मुद्दा सबसे पहले एसएम कृष्णा सरकार के समय प्रमुखता से उठा और बाद में 2005 में कांग्रेस-जेडीएस सरकार ने एजी सदाशिव आयोग का गठन किया। 2012 में आयोग ने अपनी सिफारिश में एससी वर्ग को चार श्रेणियों में बांटकर 15% आरक्षण का अंदरूनी बंटवारा करने की बात कही थी। सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले के बाद राज्य सरकार को यह अधिकार मिला कि वह किस उप-जाति को कितना आरक्षण दे।