लखनऊ:खून की मामूली जांच गर्भावस्था के दौरान किडनी संबंधी समस्या का पता पहले ही लगा सकती है। किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय में हुए अध्ययन में इसका पता लगाया गया है। यह अध्ययन एडवांस्ड बायोमेडिकल रिसर्च जर्नल में प्रकाशित हुआ है।

अध्ययन में प्रो. मुन्ना लाल पटेल, डॉ. श्रुति गुप्ता, डॉ. राधेश्याम, प्रो. रेखा सचान और प्रो. वाहिद अली शामिल रहे। केजीएमयू के स्त्री एवं प्रसूति रोग विभाग की आईसीयू में सितंबर 2021 से अगस्त 2022 के बीच 650 महिलाएं भर्ती हुई। इन महिलाओं में से 101 को अध्ययन में शामिल किया गया, जिनकी उम्र 18 से 40 वर्ष के बीच थी।

पहले से ही किडनी की बीमारी या उससे जुड़ी अन्य समस्याओं वाली महिलाओं को अध्ययन से बाहर रखा गया। अध्ययन में शामिल महिलाओं में सीरम फाइब्रोब्लास्ट वृद्धि कारक 23 (एफजीएफ-23) की जांच के लिए पहला नमूना तुरंत और दूसरा 48 घंटे बाद लिया गया। बाजार में इस टेस्ट की कीमत दो से तीन हजार रुपये है। इनमें से 61 महिलाओं में तीसरे दिन किडनी में घाव यानी एक्यूट किडनी इंजरी (एकेआई) की समस्या पता चली। बाकी 40 महिलाओं के किडनी में घाव की समस्या नहीं थी। खून की रिपोर्ट के अनुसार, एकेआई वाली सभी 61 महिलाओं में एफजीएफ-23 का स्तर बढ़ा हुआ था। वहीं, अन्य 40 महिलाओं में यह स्तर सामान्य था। इसका मतलब एफजीएफ-23 के स्तर से किडनी के संभावित घाव का अनुमान पहले ही लगाया जा सकता है।

आईसीयू में भर्ती 28.1 फीसदी महिलाओं में मिली समस्या
अध्ययन की एक वर्ष की अवधि के दौरान प्रसूति संबंधी मामलों में आईसीयू में भर्ती 650 महिलाओं में से 28.1% यानी 183 में किडनी के घाव यानी एक्यूट किडनी इंजरी (एकेआई) की समस्या पहले से थी। इनमें से 59% मामलों में एकेआई की वजह उच्च रक्तचाप था।

मातृ मृत्यु के 30% मामलों की वजह एकेआई
अध्ययन के अनुसार, मातृ मृत्यु के कुल मामलों में 30% की वजह किडनी में घाव होती है। गर्भावस्था के दौरान किडनी की चोट, जिसे गर्भावस्था-संबंधी तीव्र गुर्दे का घाव (पीआर-एकेआई) भी कहा जाता है, एक गंभीर स्थिति है। यह मातृ और भ्रूण के स्वास्थ्य के लिए भी खतरा पैदा कर सकता है। इस कारण गर्भावस्था के दौरान या प्रसव के बाद पहले तीन महीनों में किडनी अचानक काम करना बंद कर सकती है।