Friday, November 22, 2024 at 4:05 AM

‘अमेरिका का सुप्रीम कोर्ट नैतिकता के संकट में फंसा’, ट्रंप को राहत देने के मामले में बाइडन का भड़का गुस्सा

अमेरिका में पांच नवंबर को राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव होने वाले हैं। ऐसे में रिपब्लिकन की ओर से डोनाल्ड ट्रंप और डेमोक्रेट्स की तरफ से कमला हैरिस मैदान में हैं। दोनों प्रतिद्वंद्वी एक दूसरे को कड़ी टक्कर दे रहे हैं। इस बीच, राष्ट्रपति जो बाइडन ने ट्रंप को लेकर दिए गए हालिया आदेश को लेकर देश की न्यायपालिका प्रणाली की अखंडता और स्वतंत्रता पर गंभीर सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि अमेरिका का सुप्रीम कोर्ट नैतिकता के संकट में फंसा हुआ है।

शीर्ष अदालत की कड़ी आलोचना
81 वर्षीय बाइडन ने सोमवार को टेक्सास के ऑस्टिन में लिंडन बी जॉनसन प्रेसिडेंशियल लाइब्रेरी में नागरिक अधिकार अधिनियम की 60वीं वर्षगांठ पर भाषण देते हुए शीर्ष अदालत की कड़ी आलोचना की। उन्होंने कहा कि अपने अतिवादी फैसलों के अलावा अदालत नैतिकता के संकट में फंस गई है।

ट्रंप बनाम अमेरिका मामले में एक खतरनाक मिसाल
उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप बनाम अमेरिका मामले में एक खतरनाक मिसाल कायम की है, जो काफी चौंकाने वाला है। बाइडन ने कहा कि जैसा कि आप जानते हैं, अदालत ने फैसला सुनाया कि राष्ट्रपति के पद पर रहते हुए किए गए संभावित अपराधों के लिए कार्रवाई नहीं की जा सकती है।

यह है मामला
गौरतलब है, इस महीने की शुरुआत में अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत मिली थी। सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया था कि पूर्व राष्ट्रपति ट्रंप अपने कार्यकाल के अंतिम दिनों में किए गए कुछ कार्यों के लिए आपराधिक अभियोजन से सीमित छूट का दावा कर सकते हैं। इससे उनके खिलाफ चुनाव में गड़बड़ी के संघीय आरोपों के संबंध में चल रही सुनवाई में और देरी होने की उम्मीद बढ़ गई। इससे यह संभावना समाप्त हो गई कि पूर्व राष्ट्रपति पर नवंबर में होने वाले राष्ट्रपति चुनाव से पहले मुकदमा चलाया जा सकता है। डोनाल्ड ट्रंप पर आरोप है कि उन्होंने 2020 के राष्ट्रपति चुनाव में अपनी हार को पलटने की साजिश रची थी।

बुनियादी उम्मीदों का पूरी तरह से अपमान
बाइडन ने कहा, ‘यह फैसला उन बुनियादी उम्मीदों का पूरी तरह से अपमान है, जो इस देश में सत्ता संभालते हैं, उनसे कानून के तहत पूरी तरह से जवाबदेह होने की अपेक्षा की जाती है। राष्ट्रपति अब कानून से बाध्य नहीं हैं और सत्ता के दुरुपयोग पर केवल राष्ट्रपति द्वारा ही स्वयं सीमाएं लगाई जाएंगी। यह एक बुनियादी रूप से गलत दृष्टिकोण और एक बुनियादी रूप से गलत सिद्धांत, एक खतरनाक सिद्धांत है।’

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