Sunday, November 24, 2024 at 10:37 AM

‘मासिक धर्म स्वच्छता नीति लागू करने से पहले स्पष्ट करें जमीनी स्थिति’, केंद्र से बोला सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली:  सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा कि वह स्कूलों में मासिक धर्म स्वच्छता के लिए नीति लागू करने से पहले याचिकाकर्ता की ओर से उठाए गए मुद्दों को स्पष्ट करे। कोर्ट ने कहा कि नीति लागू करने से पहले यह सुनिश्चित किया जाए कि नीति का आधार सही है और यह सही तरीके से लागू होगी।

जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस पंकज मिथल की पीठ ने 12 नवंबर को अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) एश्वर्या भाटी से कहा कि वह याचिकाकर्ता की ओर से उजागर किए गए पहलुओं को देखें और अगली सुनवाई तक स्थिति स्पष्ट करें। मामले की अगली सुनवाई तीन दिसंबर को होगी।

इस नीति का मुख्य उद्देश्य स्कूल जाने वाली लड़कियों में मासिक धर्म स्वच्छता को बढ़ावा देना है, ताकि वह अपनी शिक्षा और शारीरिक स्वास्थ्य के लिए मासिक धर्म से सही तरीके से निपट सकें। एएसजी भाटी ने बताया कि नीति को सही और प्रभावी तरीके से लागू करने के लिए अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है।

अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ने कोर्ट में क्या कहा
एएसजी ने कोर्ट को बताया कि स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय राज्य सरकारों औरर केंद्र शासित प्रदेशों के साथ मिलकर संबंधित कार्य योजना तैयार करेगा, ताकि मासिक धर्म स्वच्छता नीति के सभी पहलुओं को पूरी तरह से लागू किया जा सके और सरकारी व सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों में पढ़ने वाली लड़कियों के लिए इस नीति का प्रभावी तरीके से क्रियान्वयन हो सके।

मासिक धर्म स्वच्छता नीति में गलत आंकड़े: याचिकाकर्ता
याचिकाकर्ता जय ठाकुर ने अदालत में यह याचिका दायर की है कि भारत सरकार द्वारा बनाई गई नीति स्कूल जाने वाली लड़कियों के मासिक धर्म स्वच्छता के लिए पर्याप्त नहीं है। उन्होंने आरोप लगाया कि नीति में कई आंकड़े गलत हैं और ये आंकड़े इस समस्या का सही समाधान करने में बाधा डाल सकते हैं। याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि भारत सरकार द्वारा बनाई गई नीति किसी भी तरह से याचिका में पूछे गए सवालों को ध्यान में नहीं रखती है। नीति के दस्तावेजों में उपयोग किए गए आंकड़ों में स्पष्ट विसंगतियां हैं। वकील ने यह भी कहा कि सरकार के हलफनामे में कहा गया है, यह सुधार सैनिटरी उत्पादों के प्रति बढ़ी हुई जागरूकता और उनकी उपलब्धता के कारण हुआ है, जिसमें 64.5 फीसदी लड़कियों सैनटरी नैपकिन का उपयोग करती हैं। 49.3 फीसदी कपड़े का उपयोग करती हैं और 15.2 फीसदी लड़कियां स्थानीय रूप से तैयार किए गए नैपकिन का उपयोग करती हैं। उन्होंने कहा, यह आंकड़ा गलत है, क्योंकि तीनों ही श्रेणियों का कुल 129 फीसदी बनता है।

याचिकाकर्ता ने कोर्ट से किया आग्रह
वकील के मुताबिक, भारत सरकार द्वारा नीति तैयार करने में जो आकंड़ा इस्तेमाल किया गया है, वह गलत है, इससे इसके उद्देश्य को हासिल करना मुश्किल होगा। याचिकाकर्ता के वकील ने अदालत से यह भी अनुरोध किया कि भारत सरकार को अपना आंकड़ा सही करने और नीति को अंतिम रूप देने व लागू करने से पहले देश में मौजूदा स्थिति का सहीं तरीके से आकलन करने का निर्देश दिया जाए। इसके अलावा, याचिकाकर्ता ने यह भी बताया कि मध्य प्रदेश के दमोह जिले के सरकारी स्कूलों में सैनिटरी पैड उपलब्ध नहीं हैं और अगर कोई लड़की इसे मांगती है, तो उसे घर जाने के लिए कहा जाता है।

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