कई हफ्तों की रस्साकशी के बाद अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन और हाउस रिपब्लिकन स्पीकर केविन मैकार्थी कर्ज़ सीमा को बढ़ाने के लिए सैद्धांतिक रूप से सहमत हो गए हैं.
ये न सिर्फ अमेरिका बल्कि वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए भी राहत भरी ख़बर है, क्योंकि इस सैद्धांतिक सहमति से अमेरिका के डिफ़ॉल्ट होने का ख़तरा भी टलता हुआ नज़र आ रहा है.
अमेरिका पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था की धुरी है इसलिए इसका असर वैश्विक अर्थव्यवस्था पर भी पड़ता है.हालांकि अभी इस पर कांग्रेस की मुहर लगनी बाकी है., वहीं हाउस स्पीकर केविन मैकार्थी ने कहा है कि इससे “खर्चे में ऐतिहासिक कमी आई है.”
अमेरिका की अर्थव्यवस्था 23 ट्रिलियन डॉलर की है. भारत और दूसरे देशों के तरह अमेरिका का बजट भी घाटे में चलता है, यानी सरकार को टैक्स से जितनी आमदनी होती है उससे कहीं अधिक उसके खर्चे होते हैं.
इन्हीं खर्चों को पूरा करने के लिए जो बाइडन 31.4 ट्रिलियन डॉलर की कर्ज़ सीमा को बढ़ाने की कोशिशों में लगे हैं. रिपब्लिकन इसके बदले में शिक्षा और अन्य सामाजिक कार्यक्रमों जैसे क्षेत्रों में कटौती की मांग कर रहे हैं.