चुनावी समीकरणों का एक बेहद रोचक तथ्य है कि जिस भी दल ने आरक्षित सीटों में से साठ फीसदी से ज्यादा जीतीं, सत्ता उसी के हाथ रही। सभी दल इन सीटों की अहमियत समझते हैं।
तो बसपा सुप्रीमो मायावती अनुसूचित जातियों के साथ ब्राह्मण, मुस्लिम और जाटों का गठजोड़ बनाने में जुटी हैं। मंशा साफ है कि इनमें से कोई एक भी पूरी तरह से साथ आ गया तो बात बन जाएगी।
प्रदेश में इस समय 86 आरक्षित सीटें हैं। इनमें 84 अनुसूचित जाति के लिए, तो दो सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए हैं। बहरहाल सियासी दलों की नजरें अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित 84 सीटों पर गड़ी हुई हैं।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश की 21 आरक्षित सीटों के समीकरण साधने में राजनीतिक दल जुट गए है। ब्राह्मण-अनुसूचित जाति का समीकरण साधने के लिए बसपा के राष्ट्रीय महासचिव सतीश चंद्र मिश्रा सम्मेलन कर चुके हैं।