Friday, November 22, 2024 at 4:27 AM

एसपी तो मंत्री बन गए, खेत में पुलिस चौकी न बन पाई, 25 साल पहले तीन भाइयों ने दान में दी थी जमीन

हाथरस: बात 25 साल पहले की है, उस समय थाना जंक्शन क्षेत्र डकैतों के आतंक से त्रस्त था और सुरक्षा के लिए मिर्जापुर में पुलिस चौकी की मांग कर रहे थे। पुलिस अधिकारी जमीन नहीं की बात कह रहे थे, तीन भाइयों ने दरियादिली दिखाई और अपनी एक बीघा खेती की उपजाऊ जमीन पुलिस चौकी बनाने के लिए दान कर दी। यह जमीन अभिलेखों में पुलिस चौकी के नाम भी हो गई, उस समय के एसपी असीम अरुण प्रदेश सरकार में मंत्री बन गए, लेकिन पुलिस चौकी आज तक नहीं बन पाई।

वाक्या 1999 का है। लगातार आपराधिक वारदात के चलते उस समय एसपी रहे असीम अरुण ने गांव मिर्जापुर में चौपाल लगाई थी। पुलिस चौकी बनाने की मांग उठी तो जमीन की समस्या आई। तब गांव के तीन भाइयों बंशीधर, राजन लाल व घूरेलाल ने 31 मार्च 1999 को अपनी एक बीघा जमीन राज्यपाल के नाम कर दी। इनमें बंशीधर और राजनलाल की मौत हो चुकी है।

तहसील हाथरस की खतौनी में खाता संख्या 123 में आज भी यह जमीन राज्यपाल के नाम पर है। खतौनी में खातेदार के नाम में लिखा हुआ है कि राज्यपाल द्वारा पुलिस अधीक्षक हाथरस वास्ते पुलिस चौकी रकबा .0770 हेक्टेयर देना। असीम अरुण का स्थानांतरण हो गया, उसके बाद एसपी आते-जाते रहे, लेकिन पुलिस चौकी नहीं बन पाई।

मिर्जापुर के पूर्व प्रधान सत्यप्रकाश गौतम बताते हैं कि उस समय तत्कालीन एसपी असीम अरुण ने गांव में चौपाल लगाई थी और पुलिस चौकी बनाने का प्रस्ताव रखा था। अपने प्रधानी के कार्यकाल में उन्होंने पुलिस चौकी निर्माण के लिए काफी प्रयास किए। 1999 से आज तक असामाजिक प्रवृत्ति के लोग पुलिस चौकी बनाए जाने का विरोध करते रहे। 2014 में तत्कालीन एसओ राजेश प्रसाद त्यागी ने पुलिस चौकी खोलने की संस्तुति दी, लेकिन आज तक चौकी नहीं खुल पाई। अब असीम अरुण हमारे जिले के प्रभारी मंत्री है। उम्मीद है कि अब पुलिस चौकी बन जाएगी। युवा अधिवक्ता पार्थ गौतम ने उन्हें पत्र भेजकर पुराना वादा याद दिलाया है और पुलिस चौकी की स्थापना कराने की मांग की है।

इसलिए की थी चौकी बनाने की मांग
भूमि दान देने वाले घूरे लाल शर्मा का कहना है कि उस समय क्षेत्र में डकैतों का आतंक था और वारदात होती रहती थी, इसलिए चौकी बनाने के लिए जमीन दी गई थी। आज भी थाना जंक्शन से गांव मिर्जापुर की दूरी करीब 20 किलोमीटर से अधिक है। इसलिए सुरक्षा की दृष्टि से यहां पुलिस चौकी स्थापित की जानी चाहिए। पुलिस चौकी बनने की आस में दो भाई दुनिया छोड़ गए। चौकी बनने तो मुझे भी सुकून मिलेगा।

आठ गुना बढ़ गई जमीन की कीमत
25 साल पहले जब जमीन दी गई थी, उस समय जमीन की कीमत 60 हजार रुपये बीघा थी। अब यहां जमीन की कीमत करीब पांच लाख रुपये बीघा है। यानी जमीन की कीमत में आठ गुना की वृद्धि हुई है।

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