केरल उच्च न्यायालय ने एक 16 वर्षीय दुष्कर्म पीड़िता की गर्भपात की याचिका को खारिज करने वाले अपने एकल न्यायाधीश के आदेश को खारिज कर दिया और उसे 26 हफ्ते से अधिक लंबे गर्भ को चिकित्सीय तरीके से खत्म कराने की अनुमति दे दी। इस मामले की सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश नितिन जामदार और न्यायमूर्ति एस मनु की खंडपीठ ने कहा कि मेडिकल बोर्ड ने लड़की की जांच करने के बाद यह राय दी थी कि उसे मानसिक आघात पहुंचेगा, लेकिन एकल न्यायाधीश ने इस पर विचार नहीं किया क्योंकि पैनल में कोई मनोचिकित्सक नहीं था।
पीठ ने सुनवाई से पहले पीड़िता के मानसिक स्वास्थ्य पर मांगी रिपोर्ट
पीठ ने आगे कहा कि न्यायाधीश को लड़की की मनोचिकित्सक की तरफ से जांच के लिए निर्देश जारी करना चाहिए था। दुर्भाग्य से, ऐसा कोई निर्देश जारी नहीं किया गया। दरअसल पीठ ने ये टिप्पणी नाबालिग की मां की तरफ से दायर अपील पर एकल न्यायाधीश के फैसले को खारिज करते हुए की। जब 7 नवंबर को खंडपीठ के समक्ष अपील सुनवाई के लिए आई, तो उसने निर्देश दिया था कि नाबालिग की मनोचिकित्सक की तरफ से जांच की जाए और गर्भावस्था के कारण होने वाली परेशानी के संबंध में उसके मानसिक स्वास्थ्य के बारे में एक रिपोर्ट पेश की जाए।
मनोचिकित्सक की रिपोर्ट में पीड़िता की स्थिति को लेकर हुआ खुलासा
मनोचिकित्सक की रिपोर्ट में कहा गया था कि लड़की अवसादग्रस्त प्रतिक्रिया के साथ समायोजन विकार का अनुभव कर रही थी। रिपोर्ट में कहा गया है कि उसके पास गर्भावस्था को जारी रखने की मानसिक क्षमता नहीं है और ऐसा करना उसके मानसिक स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होगा। खंडपीठ ने कहा, इसके अनुसार, याचिकाकर्ता (मां) को मेडिकल बोर्ड और मनोचिकित्सक की राय के अनुसार अपनी नाबालिग बेटी के गर्भ को समाप्त करने (एमटीपी) की अनुमति दी जाती है। पीठ ने राज्य के सरकारी मेडिकल कॉलेज अस्पताल को नाबालिग के गर्भ को समाप्त करने के लिए आवश्यक प्रक्रिया को पूरा करने का निर्देश दिया।