सरकार ने बताया कि पिछले एक दशक में दालों और खाद्य तेलों के उत्पादन पहले की तुलना में तेजी से बढ़ा है। सांसदों ने मांग पूरे करने के लिए भारत की आयात पर निर्भरता को लेकर चिंता जताई । 20 जून को हुई समिति की बैठक में कृषि मंत्रालय ने बताया कि आत्मनिर्भरता की दिशा में लगातार काम हो रहा है।
आयात पर सालाना 80 हजार करोड़ रुपये हो रहा खर्च
कृषि, पशुपालन और खाद्य प्रसंस्करण पर संसद की स्थायी समिति को दी गई एक प्रस्तुतीकरण में कहा गया कि 2023-24 में खाद्य तेलों की घरेलू मांग में 56 प्रतिशत हिस्सा 15.66 मिलियन मीट्रिक टन (एमएमटी) आयात से पूरा हुआ। बताया गया कि खाद्य तेल आयात पर भारत की भारी निर्भरता के कारण सालाना 80,000 करोड़ रुपये से अधिक का नुकसान हो रहा है।
तिलहन उत्पादन में 55% की वृद्धि हुई
मंत्रालय ने बताया कि 2014-15 से 2024-25 के बीच तिलहन उत्पादन में 55 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई है। तीसरे अग्रिम अनुमान के मुताबिक बीते वित्त वर्ष में उत्पादन 426.09 लाख टन तक पहुंच गया है। तुलना करें तो 2004-05 से 2014-15 के बीच यह वृद्धि केवल 13 फीसदी थी।
सूरजमुखी और सोयबीन तेल आयात पर निर्भर
मंत्रालय ने बताया कि इस अवधि में सरसों और मूंगफली तेल की जरूरत देश में उत्पादित तेल से पूरी हो रही है, लेकिन सूरजमुखी तेल की खपत 3.55 एमएमटी के मुकाबले 3.49 एमएमटी का आयात करना पड़ा। सोयाबीन तेल की खपत का 60 फीसदी से ज्यादा हिस्सा भी आयात से पूरा किया गया।
दाल के उत्पादन ने हुई 47 प्रतिशत की वृद्धि
दालों का उत्पादन भी 2014-25 के दौरान 47 फीसदी बढ़ा, जबकि 2004-14 में यह वृद्धि 31 फीसदी रही। बैठक में सांसदों ने धान और गेहूं उगाने वाले किसानों को दलहन और अन्य फसलों की खेती करने के लिए प्रोत्साहित करने का आह्वान किया। मंत्रालय ने 2030-31 तक दलहन और तिलहन उत्पादन में आत्मनिर्भरता हासिल करने के लिए सरकार के रोडमैप और इस वर्ष के बजट में घोषित कार्यक्रमों के बारे में विस्तार से बताया।