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बांस में फूल लगने के बाद महामारी और अकाल का दंश, भारत के पूर्वोत्तर में हमेशा दिखाई दिए हैं लक्षण

बांस में फूल आना शुभ संकेत नहीं माना जाता है। फूल लगने के बाद बांस के पेड़ का अंत हो जाता है। बांस के फूल आने का मतलब है कि वह झाड़ अपना जीवनकाल पूरा कर चुका है, लेकिन साथ ही एक नई रिपोर्ट में पूर्वोत्तर भारत में अकाल के लिए बांस के पौधों के फूलने को जिम्मेदार माना गया है।

मिजोरम बना उदाहरण
मिजोरम सरकार ने 1815 से शुरू होकर दो शताब्दियों से अधिक समय से राज्य में लगभग 50 सालों के अंतराल पर अकाल पड़ने का रिकॉर्ड रखा है। आंकड़ों से पता चलता है कि मिजोरम राज्य ने भी उसी समय अकाल का सामना किया जब बांस में फूल लगे। मिजोरम में पहली बार 1911 में अकाल पड़ा था। फिर 1959 में और उसके बाद 2007 में।

क्या कहता रिपोर्ट?
रिपोर्ट के अनुसार स्थानीय लोग बांस के पौधे के फूलने की इस चक्रीय घटना को मौतम कहते हैं। यह नाम बांस की एक प्रजाति से लिया गया है। ऐतिहासिक आंकड़े और स्थानीय कहावत बांस के दुर्लभ फूल के घातक परिणामों की गवाही देती हैं। पूर्वोत्तर भारत के मिजो लोगों ने पीढ़ियों से इस घटना को सहन किया है। वर्ष 2009 में बांस के फूल खिलने के बाद मिजोरम के लाखों लोगों को भुखमरी के कगार पर खड़ा कर दिया था।

40 से 120 साल चलता है फूल खिलने का चक्र
बांस में फूल खिलने का चक्र 40 से 120 साल तक चल सकता है। मिजोरम में मेलोकाना बैक्सीफेरा बांस की एक बड़ी प्रजाति है जिसे स्थानीय रूप से मौतुक के रूप में जाना जाता है। यह हर 48 से 50 साल में एक बार फूलता है और इस समय लाखों बांस के पौधे भारी मात्रा में बीज पैदा करते हैं। इस क्षेत्र के काले चूहों की आबादी इन पोषक तत्वों से भरपूर बीजों की ओर आकर्षित होती है और उनकी आबादी में अचानक वृद्धि देखी जाती है।

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