Friday, December 27, 2024 at 6:17 AM

‘दोषसिद्धि नैतिक नहीं, साक्ष्य आधारित ही हो सकती है’, अदालत ने अपहरण-हत्या केस में रणदीप सिंह को बरी किया

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि किसी मामले में नैतिक दोषसिद्धि नहीं हो सकती। अदालतें केवल कानूनी रूप से स्वीकार्य साक्ष्य के आधार पर ही किसी आरोपी को दोषी ठहरा सकती हैं।

यह टिप्पणी करते हुए जस्टिस अभय एस ओका की अध्यक्षता वाली पीठ ने अपहरण और हत्या के मामले में रणदीप सिंह उर्फ राणा और एक अन्य आरोपी को बरी कर दिया। पीठ ने पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के उस फैसले को दरकिनार कर दिया, जिसमें अंबाला की एक अदालत ने उनकी दोषसिद्धि व आजीवन कारावास की सजा को बरकरार रखा गया था। राज्य के वकील ने हाईकोर्ट और ट्रायल कोर्ट के निष्कर्षों का बचाव करते हुए यह भी तर्क दिया था कि यह जघन्य हत्या का मामला था। पीठ ने कहा कि यह सच है कि यह एक क्रूर हत्या का मामला है। अपराध की क्रूरता उचित संदेह से परे सबूत की कानूनी आवश्यकता को समाप्त नहीं करती है। इस मामले में आरोपी की संलिप्तता साबित करने के लिए कोई कानूनी सबूत नहीं है। अदालतें किसी आरोपी को तभी दोषी ठहरा सकती हैं जब कानूनी रूप से स्वीकार्य सबूतों के आधार पर उसका अपराध उचित संदेह से परे साबित हो जाए। नैतिक दोषसिद्धि नहीं हो सकती।

शीर्ष अदालत ने मृतक की बहन की गवाही पर नहीं किया विश्वास

शीर्ष अदालत ने मृतक की बहन परमजीत कौर की गवाही पर विश्वास नहीं किया जो प्रत्यक्षदर्शी होने का दावा करती हैं। कोर्ट ने सीसीटीवी फुटेज की सीडी के सबूतों को खारिज कर दिया और यह भी पाया कि एक अन्य प्रत्यक्षदर्शी (परमजीत के पति) से पूछताछ नहीं की गई। पीठ ने कहा कि केवल बरामदगी के सबूतों के आधार पर आरोपी को दोषी ठहराना संभव नहीं है।

यह था मामला

मामला 8 जुलाई, 2013 को गुरपाल सिंह के अपहरण और हत्या से संबंधित है। उसका धड़ अगले दिन नहर में मिला था। उसकी बहन ने दावा किया था कि मृतक उससे मिलने आया था, जिसका आरोपी ने वाहन छीनने के बाद कार में अपहरण कर लिया। शीर्ष अदालत ने कहा कि बहन का आरोपी की पहचान करना बहुत ही संदिग्ध है क्योंकि शिनाख्त परेड नहीं हुई है। सीसीटीवी फुटेज के बारे में अदालत ने कहा कि सीडी पर किसी भी गवाह का कोई निशान या हस्ताक्षर नहीं था।

अभियोजन साक्ष्य पेश करने में नाकाम रहा…

पीठ ने कहा कि सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि अभियोजन पक्ष साक्ष्य अधिनियम की धारा 65बी के तहत प्रमाण पत्र प्रस्तुत करने में विफल रहा। इसलिए सीडी के रूप में साक्ष्य को विचार से बाहर रखा जाना चाहिए, क्योंकि यह स्वीकार्य नहीं है। यह मानते हुए कि सीसीटीवी फुटेज स्वीकार्य है, ट्रायल जज और हाईकोर्ट के न्यायाधीशों ने सीसीटीवी फुटेज नहीं देखी। फिर भी अदालतों ने इस पर भरोसा किया। पुलिस के समक्ष दिए गए ऐसे इकबालिया बयानों को साबित करने पर भी पूरी तरह से रोक है। ट्रायल जज ने साक्ष्य अधिनियम की धारा 25 और 26 को पूरी तरह से नजरअंदाज कर दिया है और जांच अधिकारी को पुलिस हिरासत में रहने के दौरान आरोपियों द्वारा कथित तौर पर दिए गए इकबालिया बयानों को साबित करने की अनुमति दे दी।

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