Tuesday, December 3, 2024 at 11:00 PM

गन्ना बेल्ट लातूर में विलासराव देशमुख के दो बेटों की परीक्षा; प्रतिष्ठा की जंग, हर वोट अहम

लातूर जिले की राजनीति का जिक्र आते ही सबसे बड़ा नाम पूर्व मुख्यमंत्री विलासराव देशमुख का सामने आता है। शहर में घूमेंगे, तो उनका नाम कई सरकारी भवनों पर भी दिखाई देगा। उनके बाद विरासत को पहले बड़े बेटे अमित देशमुख ने संभाला और फिर छोटे बेटे धीरज देशमुख भी राजनीति में आए। दोनों ही विधायक बन गए। इस बार दोनों फिर से चुनावी मैदान में हैं और कड़े मुकाबले में फंसे हुए हैं।

लातूर गन्ना बेल्ट के लिए जाना जाता है और यहां पर देशमुख परिवार की कई चीनी मिलें भी हैं। मराठवाड़ा का अहम हिस्सा होने के कारण मराठा आरक्षण राजनीति का असर यहां भी दिखाई देता है। खास बात यह है कि भाजपा के महायुति गठबंधन ने इस बार कांग्रेस की मजबूत सीटों पर सबसे ज्यादा घेरेबंदी की है। इसी जिले से पूर्व गृहमंत्री शिवराज पाटिल भी आते हैं, तो पूर्व सीएम रहे संभाजी पाटिल निलंगेकर का परिवार भी यहां की राजनीति में अच्छी-खासी दखल रखता है। इस बार भी अलग-अलग सीटों पर इन बड़े परिवारों से उम्मीदवार मैदान में हैं। लातूर जिले में कुल कुल छह सीटें हैं और पिछली बार कांग्रेस, एनसीपी और भाजपा ने दो-दो सीटें जीती थीं।

सबसे रोचक मुकाबला लातूर शहर की सीट पर
लातूर सीट पर विलासराव देशमुख जीतते रहे थे। उनके बाद उनके बेटे अमित देशमुख को यह सीट विरासत में मिली। पिता के नाम और अपनी साफ सुथरी छवि के कारण अमित तीन बार जीतने के बाद चौथी बार मैदान में हैं। यह अलग बात है कि इस बार समीकरण कुछ उलझे से नजर आ रहे हैं। फिल्म स्टार रितेश देशमुख भी भाई को जिताने के लिए प्रचार में लगे हुए हैं। दरअसल, इस बार कड़े मुकाबले की वजह भाजपा की प्रत्याशी अर्चना पाटिल चाकुरकर हैं। वह कांग्रेस के दिग्गज नेता और देश के पूर्व गृहमंत्री शिवराज पाटिल की बहू हैं। स्थानीय विशेषज्ञों का कहना है कि पूर्व गृहमंत्री पाटिल ने अभी खुले मंच से तो बहू के लिए प्रचार नहीं किया है, लेकिन अंदरखाने मदद की बात खूब कही जा रही है।

  • एक तरफ तीन बार का विधायक होने के बावजूद विकास के ज्यादा काम न होने से स्थानीय लोगों में अमित से नाराजगी है। वहीं, अर्चना सामाजिक कामों से शहर से जुड़ी रही हैं। यह बात भी चल रही है कि अमित मुंबई में रहेंगे और अर्चना विधायक होने के बाद उनके बीच। कहानी में नया पेच प्रकाश आंबेडकर की वंचित बहुजन आघाड़ी ने भी फंसा दिया है। उनके प्रत्याशी विनोद खटके के कार्यक्रमों में भीड़ उमड़ रही है। पहले दलित अच्छी संख्या में कांग्रेस को जाता रहा है। इस बार बंटवारा हो सकता है।

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