Friday, November 22, 2024 at 9:33 PM

शाहरुख बनने की कोशिश में फिर धरे गए मनोज बाजपेयी, पढ़िए कहां चूके सिनेमा के ‘चौहान’

दो बार अपने अभिनय के लिए राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार जीत चुके अभिनेता मनोज बाजपेयी की नई फिल्म ‘भैया जी’ को उनकी 100वीं फिल्म कहकर प्रचारित किया जा रहा है, लेकिन 30 साल पहले आई फिल्म ‘बैंडिट क्वीन’ से गिनती करें तो ओटीटी और बड़े परदे पर रिलीज फीचर फिल्मों की संख्या अभी 80 तक ही पहुंचती दिख रही है। हां, कैमरे के सामने वह 100 बार जरूर दिख चुके हैं, और ये गिनती उनके धारावाहिकों और वेब सीरीज को मिलाकर ठीक बैठती है। फिल्म ‘भैया जी’ के टीजर पर मनोज बाजपेयी का परिचय उनके किरदार के साथ साथ ‘ए क्रिएशन बाय मनोज बाजपेयी’ के रूप में आया। मतलब ये कि इस फिल्म को देखते-सुनते समय जो कुछ भी सामने आया है, उसकी जिम्मेदारी सिर्फ और सिर्फ मनोज बाजपेयी की है। इस फिल्म के लेखक दीपक किंगरानी और निर्देशक अपूर्व सिंह कार्की के साथ वह इससे पहले ‘सिर्फ एक बंदा काफी है’ में दिखे थे, जिसके रचनात्मक निर्माता सुपर्ण वर्मा थे। इस बार सुपर्ण वर्मा पिक्चर में नहीं हैं और समझ ये आता है कि कभी कभी सिर्फ एक ही बंदा किसी जंग को जीतने के लिए काफी नहीं भी होता है।

जिया हो बिहार के लाला पार्ट 2
फिल्म ‘भैया जी’ की कहानी बिहार से शुरू होती है। राम चरण दुबे, जिसे अतीत में लोग भैया जी कहकर बुलाते रहे हैं, की शादी होने जा रही है। अधेड़ उम्र में हो रही शादी पर वहां मौजूद लोग ठिठोली भी करते हैं। फिर ‘मैं आई हूं यूपी बिहार लूटने’ टाइप का एक गाना होता है। गाने के बीच में भैयाजी की दिल्ली में पढ़ रहे अपने भाई से लगातार फोन पर बात होती रहती है और फिर संपर्क टूट जाता है। अगले दिन कमलानगर थाने से फोन आता है। भैया जी अपने दोनों सिपहसालारों के साथ दिल्ली पहुंचते हैं। जब तक भैयाजी अपने भाई तक पहुंच सकें, छोटे का शरीर श्मशानगृह में राख में तब्दील को चुका है। पता चलता है कि उनका भाई दुर्घटना में नहीं मरा बल्कि उसे मारा गया है।

कहानी का खलनायक हरियाणवी है। तुम को तम बोलने से उसकी ये पहचान उजागर होती है। बाकी वह एक आम क्राइम पेट्रोल जैसा ही खलनायक है। बेटा उसका बिगड़ा हुआ है। बाप उसे बचाने के लिए कुछ भी कर सकता है। एक चम्पू टाइप सियासी पार्टी है। उसके लिए वह इतना ज्यादा नकद चंदा देता है कि उसे एक जगह से दूसरी जगह भेजने के लिए ट्रकों और रेलगाड़ी की जरूरत पड़ती है। भैयाजी को अब क्या करना है, ये दर्शकों को पहले से ही पता है। और, आखिर तक कहानी बस यहीं ठहरी रहती है।

शाहरुख खान बनना इतना आसान नहीं है
दीपक किंगरानी हिंदी सिनेमा के उभरते हुए चिंतनशील लेखक हैं। आईटी उद्योग छोड़ सिनेमा में आए हैं और हिंदुस्तान में जब तक सनीमा है, तब तक क्या होता रहेगा, ये बात मनोज बाजपेयी की फिल्म ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’ में अनुराग कश्यप जमाना पहले बता चुके हैं। ठीक से देखें तो भैयाजी एक तरह से सरदार खान का ही नया अवतार है। बस तब से अब तक मनोज बाजपेयी 12 साल और ‘बूढ़े’ हो चुके हैं और ये परदे पर दिखने लगा है। कोई 24 साल पहले मनोज बाजपेयी की फिल्म ‘दिल पे मत ले यार’ रिलीज हुई थी।

उन दिनों शाहरुख खान की रूमानी फिल्मों का दौर था और तब मैंने इसके रिव्यू में लिखा था कि मनोज को शाहरुख खान बनने की कोशिश नहीं करनी चाहिए। मनोज बाजपेयी ने फिल्म ‘भैयाजी’ में वही गलती फिर दोहराई है। इन दिनों शाहरुख खान एक्शन फिल्में कर रहे हैं और उन्हीं की देखा देखी फिल्म ‘भैया जी’ में मनोज इस बार एक्शन करते दिखाई दे रहे हैं। और, ये एक्शन उनकी कद काठी और स्क्रीन एज पर फबता नहीं है। उनको एक्शन करना ही है तो हॉलीवुड अभिनेता लियाम नीसन उनका सटीक संदर्भ बिंदु हो सकते हैं।

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