बीते कुछ सालों में पहाड़ी इलाकों पर हिमस्खलन की घटनाएं बढ़ गई हैं। पर्यावरण विशेषज्ञों का मानना है कि हिमालय में ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं। पहाड़ों पर बर्फ के बढ़ते कहर पर अध्ययन करने के लिए दो वैज्ञानिकों की टीम केदारनाथ गई है।
नेपाल के मानसलू बेस कैंप के पास भारी हिमस्खलन हुआ था। इसमें कई टेंट नष्ट हो गए थे। इससे पहले पिछले महीने भी यहां भीषण हिमस्खलन हुआ था, जिसमें दो लोगों की जान चली गई थी।
हिमालयन क्षेत्र में पहाड़ों पर गिरने वाली बर्फ और हिमस्खलन पर शोध करने वाले संस्थान ‘स्नो एवलांच स्टडी एंड इस्टैब्लिशमेंट के पूर्व निदेशक डॉक्टर अश्वघोष गंजू कहते हैं कि तकरीबन डेढ़ से दो दशक पहले पहाड़ी इलाकों पर स्थित ग्लेशियरों या उन जगहों पर जहां साल भर लगातार बर्फबारी होती थी, वहां एवलांच का सीजन 6 महीने से ज्यादा का हुआ करता था।
बहुत ऊंचे दर्जे पर तो साल-साल भर छोटे-मोटे भूस्खलन होते ही रहते थे।केदारनाथ की ऊंची चोटियों पर बीते शनिवार यानी एक अक्तूबर को आए हिमस्खलन से हड़कंप मच गया। केदारनाथ धाम के पास चोराबारी ग्लेशियर पर सुबह करीब साढ़े पांच से छह बजे के बीच हिमस्खलन हुआ था। इससे पहले 23 सितंबर को भी हिमस्खलन की घटना हुई थी।
उत्तराखंड के उत्तरकाशी में द्रौपदी का डांडा चोटी (5771 मी.) में मंगलवार को आया हिमस्खलन मुसीबत बन गया। बर्फीले तूफान में फंसने से कई पर्वतारोहियों की मौत हो चुकी है। बचाव कार्य अभी भी जारी है।