यूपी के चुनावी घमासान में बसपा की धीमी चाल राजनीतिक समीकरण प्रभावित कर सकती है। मौजूदा समय में भाजपा, सपा और कांग्रेस के मुकाबले बसपा की तैयारियां काफी कम दिख रही है।
ऐसे में विभिन्न दलों की कोशिश बसपा के वोट बैंक में सेंध लगाने की है। बसपा के उभार में उसके साथ जुड़े सवर्ण व पिछड़ा वर्ग समुदाय का भी बड़ा योगदान रहा है। भाजपा की रणनीति इस वर्ग को अपने साथ जोड़ने की है।
इस समय बसपा सुप्रीमो मायावती पार्टी में नया नेतृत्व सामने ला रही है। सतीश चंद्र मिश्रा के अलावा और कोई बड़ा सवर्ण चेहरा बसपा के पास नहीं है। ओबीसी समुदाय के भी कद्दावर नेताओं की बसपा में कमी है। बीते चुनावों में भी भाजपा को इन वर्गों का बड़ा समर्थन मिला था। अब उसे और बढ़ाने की तैयारी है।
भाजपा नेतृत्व ने उत्तर प्रदेश में दूसरे दलों से आने वाले नेताओं को शामिल कराने के लिए एक ज्वाइनिंग कमेटी भी बनाई हुई है। यह समिति जोर शोर से काम कर रही है और लगातार सपा, बसपा व कांग्रेस के छोटे-बड़े नेताओं को शामिल किया जा रहा है।