Saturday, July 27, 2024 at 5:23 AM

मंदिर की बात सुन मुस्कुरा उठते हैं नृत्यगोपाल दास, होंठों पर बस…जय सियाराम-सीताराम

सुनि प्रभु बचन मगन सब भए। को हम कहाँ बिसरि तन गए॥
एकटक रहे जोरि कर आगे।
सकहिं न कछु कहि अति अनुरागे॥
यानी, प्रभु को सुनकर सब प्रेम मग्न हो गए। हम कौन हैं और कहां हैं? यह सुध भी भूल गए। हाथ जोड़, टकटकी लगाए देखते रह गए। प्रेम के कारण कुछ कह नहीं सके। नीचे राम दरबार, मंदिर, चौपाइयां पढ़ते संत। और उसी मंदिर के पीछे से संकरी सीढ़ियों का रास्ता। सीढ़ियां खत्म होते ही सीआरपीएफ की चौकी। हथियारों से लैस सैनिक और ऊपर छत को घेरे कंटीले तार। जैसे कोई संत की छावनी नहीं वॉर जोन हो।

सामने बड़ा सा कांच और उसके दाहिने ओर छोटी सी खिड़की। नीचे श्री गुरुदेव का चरणामृत लिखा स्टूल और उस पर लोटा में पानी। दान पेटी। और दूसरी ओर चरणपादुकाएं, उनपर ताजे फूल हैं। यहां राममंदिर आंदोलन के योद्धा, रामजन्मभूमि न्यास के अध्यक्ष और मणिरामदास छावनी के महंत नृत्यगोपाल दास रहते हैं।

बड़े से कांच के पीछे पर्दा है। उसके खुलने के पहले ही भक्त साष्टांग हो रहे हैं। पर्दा खुलता है, पीछे अस्पताल के रोटेटिंग बेड पर सिरहाना लगाए गुरुजी बैठे हैं। पास खड़ा शिष्य पैर दबा रहा है। वह प्यार से उसका सिर सहला देते हैं। 85 साल के नृत्यगोपाल दास बमुश्किल कुछ कहते हैं। भक्तों को देखकर मुस्कुरा देते हैं, या आशीर्वाद देते वक्त जयसियाराम कहते हैं। अब इस उम्र में उन्हें कुछ याद तक नहीं। उनका मन और जहन किसी बच्चे सा हो चला है। बीती बिसरी बातों से उन्हें अचानक कुछ याद आता है और वह बड़बड़ाने लगते हैं…रामलला का मंदिर बनेगा, भव्य मंदिर बनेगा। यह राममंदिर आंदोलन के सबसे मजबूत संत की बेहद भावुक कहानी है।

साये की तरह उनके साथ रहने वाले जानकी दासजी उनसे कहते हैं, यह आपसे सवाल पूछने आए हैं। फिर दुलार से समझाते हैं, आप अध्यक्ष हैं ना इसलिए…। नृत्यगोपाल दास वहां मौजूद लोगों को प्रसाद देने का इशारा करते हैं। खुद सारी उम्र सिर्फ फलाहार करते रहे हैं। सख्त नियम-कायदों वाले संत। इनदिनों सुबह कक्ष में बने मंदिर में ही पूजन होता है। व्हीलचेयर पर लिफ्ट से नीचे बड़े हनुमान जी के दर्शन को ले जाते हैं। गाहे-ब-गाहे मोबाइल फोन पर बांके बिहारी के दर्शन भी करवाते हैं। 22 तारीख को वह भी रामलला के दर्शन को जाएंगे, शायद यह बात जानते तक नहीं। पर मंदिर की बात सुनकर हर बार मुस्कुरा जरूर देते हैं। हां, दिन में कई बार बुदबुदाते हैं…जयसियाराम। सीताराम।

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