देहरादून: पहाड़ों पर इस बार बुरांश समय से पहले खिल गया, इससे वैज्ञानिक चिंतित थे ही, अब उत्तराखंड के पहाड़ों से सेब, आड़ू, आलूबुखारा, नाशपाती भी गायब होने लगे हैं। पर्वतीय ट्री लाइन हर साल कई फीट ऊंचाई वाले क्षेत्रों की ओर शिफ्ट होने लगी है। वैज्ञानिक इसकी वजह ग्लोबल वार्मिंग बता रहे हैं। इसका असर पहाड़ के देवदार से लेकर मैदान में आम के पेड़ों तक दिखने लगा है।

इंटरनेशनल सेंटर फॉर इंटीग्रेटेड माउंटेन डेवलपमेंट की एक रिपोर्ट से पता चला है कि पूर्वी हिमालय में खासकर सर्दियों और वसंत के दौरान तापमान बढ़ रहा है। जिससे देवदार के पेड़ों में 38 फीसदी तक की गिरावट आई है और वृक्षरेखा अधिक ऊंचाई की ओर स्थानांतरित हो रही है। इस परिवर्तन से जहां बुग्यालों का अस्तित्व खतरे में पड़ सकता है। वहीं मैदान में भी पेड़ पौधे सुरक्षित नहीं हैं। कई जगह आम के पेड़ों में बौरों का आना जल्दी शुरू हो गया था।

फल उत्पादन में करीब 53 प्रतिशत की गिरावट
विशेषज्ञों के अनुसार इसके लिए बेमौसम बारिश और सामान्य से ज्यादा गर्म होती सर्दियां जिम्मेवार हो सकती हैं। ऐसा ही कुछ सेबों के मामले में भी देखने को मिल रहा है। पहाड़ों पर बर्फबारी कम होने से इसकी पैदावार पर असर पड़ रहा है। बढ़ते तापमान के साथ उत्तराखंड के पहाड़ों से सेब, आड़ू, आलूबुखारा, खुबानी, नाशपाती गायब हो रहे। अल्मोड़ा में फल उत्पादन 84 फीसदी घट गया है, जो उत्तराखंड के सभी जिलों में सर्वाधिक है। इसी तरह चमोली में भी फल उत्पादन में करीब 53 प्रतिशत की गिरावट आई है।

वैज्ञानिकों का कहना है कि पहाड़ों में पाए जाने वाले कई पेड़-पौधे बढ़ते तापमान के साथ तालमेल नहीं बैठा पा रहे हैं। ऐसे में यदि समय रहते ध्यान न दिया गया तो उनके लिए अस्तित्व को बचाए रखना कठिन हो जाएगा। उन्होंने कुछ क्षेत्रों में बर्फ की मात्रा में बदलाव करके कृत्रिम रूप से तापमान बढ़ाकर देखा कि पौधे बढ़ती गर्मी का सामना कैसे करते हैं, लेकिन अध्ययन के नतीजे निराशाजनक रहे। पौधे न तो खुद को गर्म तापमान के अनुसार बदल पाए और न ही पहाड़ की ऊंचाई पर तेजी से फैल पाए, ताकि वे गर्मी से बच सकें। आशंका है कि वे प्रजातियां समय के साथ विलुप्त हो जाएंगी।