वाराणसी: बीएचयू पहुंचे अयोध्या स्थित हनुमत निवास के पीठाधीश्वर आचार्य मिथिलेश नंदिनी शरण 38 मिनट के अपने व्याख्यान में काशी के आनंद और दुख दोनों का मर्म समझा गए। उन्होंने कहा कि जो दुनिया भर में विषाद का विषय है, वो काशी में प्रसाद का विषय बन जाता है। लेकिन, आप प्रयास करें कि काशी कहीं अपने आनंद भाव को खो न दे। जबकि काशी ने हजारों पीढि़यों में अपने-आप को नहीं खोया।
कला संकाय में काशी: संस्कृति, परंपरा एवं परिवर्तन विषय पर शुरू हुई 15 दिवसीय कार्यशाला में धर्मस्थलों पर जुटने वाली भारी भीड़ पर मिथिलेश नंदिनी ने तंज कसा। कहा कि यदि सबको ही पर्यटन के लिए केदारनाथ भेजा जाएगा तो फिर एकांतवास में पूजा पाठ कैसे होगी। जिस तरह लोग मंदिरों में पहुंचने लगे हैं, यदि शंकर जी का जरा भी मिजाज बदल गया तो आप जानते हैं क्या होगा…। सभागार में बैठे विद्वान और छात्र-छात्रा यह सुन ठिठक गए। उन्होंने पूछ लिया महादेव हैं या नहीं।
इस पर आचार्य मिथिलेश नंदिनी ने कहा कि भगवान शिव अभी तो हैं, लेकिन जिस दिन महादेव काशी छोड़कर चले जाएंगे, उस दिन यहां कोई ये पूछने वाला नहीं होगा कि महादेव हैं या नहीं। उन्होंने कहा कि हमने महादेव के होने के आनंद को कम कर दिया है। काशी में हो रहे सांस्कृतिक परिवर्तन का मूल बाजार ही है। इसलिए 15 दिन की कार्यशाला में उस पर मंथन हो। उन्होंने कहा कि विकास का नाम कॉरिडोर बनाना नहीं है। उन्होंने कहा कि स्वभाव में काशी को आनंद, आनंदवन या शिव का सच्चिदानंद कहा जा सकता है। ये ही आनंद, ज्ञान में कन्वर्ट हुआ और अब काशी की परंपरा बन गया। दुनिया की प्राचीन सभ्यताएं गर्त में चली गईं, लेकिन काशी आज भी वैसी रही।
काशी के अल्हड़पन से डरती है दुनिया
आनंद क्या है इस पर उन्होंने कहा कि दूसरे शहरों में लोग शवों को देखकर दूर भागते हैं, लेकिन काशीवासी शवों को ही धक्का देकर आगे निकल जाते हैं। बाहरी लोग काशी के अल्हड़पन से डर जाते हैं। ये वैसे ही है जैसे शिव को दूल्हा देख घराती भागते हैं। सैकड़ों को पीएचडी करा चुके प्रोफेसर घाट पर विस्फोट की परवाह किए बिना सोते हैं। ध्यान से देखो तो उसी घाट के नीचे एक देवता भी सोए होते हैं। इसी को आनंद कहा जाता है।