Friday, November 22, 2024 at 11:10 PM

अबू धाबी का हिंदू मंदिर खुद में बेशकीमती, वैज्ञानिक तकनीकों और प्राचीन वास्तुशिल्प विधियों का संगम

राजस्थान के गुलाबी बलुआ पत्थरों से निर्मित अबूधाबी के पहले हिंदू मंदिर का भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज उद्घाटन करेंगे। यह मंदिर अपनी भव्यता से दुनियाभर के लोगों को आकर्षित कर रहा है। यह मंदिर कोई मामूली तरीके से नहीं , बल्कि इसे वैज्ञानिक तकनीकों और प्राचीन वास्तुकला विधियों का इस्तेमाल करके बनाया गया है।

27 एकड़ में बना है मंदिर
इस मंदिर को अल रहबा के समीप स्थित बोचासनवासी श्री अक्षर पुरुषोत्तम स्वामीनारायण संस्था (बीएपीएस) द्वारा निर्मित कराया गया है। 27 एकड़ में बना 108 फुट ऊंचा यह मंदिर वास्तुशिल्प का चमत्कार माना जा रहा है। मंदिर प्रबंधन के मुताबिक मंदिर के दोनों ओर, गंगा और यमुना का पवित्र जल बह रहा है, जिसे बड़े-बड़े कंटेनर में भारत से लाया गया है। मंदिर प्राधिकारियों के अनुसार, जिस ओर गंगा का जल बहता है वहां पर एक घाट के आकार का एम्फीथिएटर बनाया गया है।

1997 में की गई थी कल्पना
मंदिर यूएई की राजधानी अबू धाबी में ‘अल वाकबा’ नाम की जगह पर बनाया गया है। यह धर्म स्थल 20,000 वर्ग मीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है। हाइवे से सटी अल वाकबा नामक जगह अबू धाबी से तकरीबन 30 मिनट की दूरी पर है। यूएई का पहला हिंदू मंदिर भले ही 2023 में बनकर तैयार हुआ, लेकिन इसकी कल्पना करीब ढाई दशक पहले 1997 में बीएपीएस संस्था के तत्कालीन प्रमुख स्वामी महाराज ने की थी।

नींव के लिए इसका इस्तेमाल
इस मंदिर में तापमान मापने और भूकंपीय गतिविधि पर नजर रखने के लिए उच्च तकनीक वाले 300 से अधिक सेंसर लगाए गए हैं। मंदिर के निर्माण में किसी भी धातु का उपयोग नहीं किया गया है। नींव को भरने के लिए उड़न राख यानी ‘फ्लाई ऐश’ (कोयला आधारित बिजली संयंत्रों से निकलने वाली राख) का उपयोग किया गया है। इस मंदिर को करीब 700 करोड़ रुपये की लागत से बनाया गया है।

मंदिर प्राधिकारियों के अनुसार, इस भव्य मंदिर को शिल्प और स्थापत्य शास्त्रों में वर्णित निर्माण की प्राचीन शैली के अनुसार बनाया गया है। शिल्प और स्थापत्य शास्त्र ऐसे हिंदू ग्रंथ हैं, जो मंदिर के डिजाइन और निर्माण की कला का वर्णन करते हैं।

वास्तुशिल्प पद्धतियों के साथ वैज्ञानिक तकनीकों का इस्तेमाल
बीएपीएस के अंतरराष्ट्रीय संबंधों के प्रमुख स्वामी ब्रह्मविहरिदास का कहना है, ‘इसमें वास्तुशिल्प पद्धतियों के साथ वैज्ञानिक तकनीकों का इस्तेमाल किया गया है। तापमान, दबाव और गति (भूकंपीय गतिविधि) को मापने के लिए मंदिर के हर स्तर पर उच्च तकनीक वाले 300 से अधिक सेंसर लगाए गए हैं। सेंसर अनुसंधान के लिए लाइव आंकड़े प्रदान करेंगे। यदि क्षेत्र में कोई भूकंप आता है, तो मंदिर इसका पता लगा लेगा।’

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