संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट में चिंताजनक खुलासा हुआ है। इस रिपोर्ट के अनुसार, बीते 30 वर्षों में दुनिया की तीन चौथाई यानी 77 प्रतिशत धरती शुष्क हो गई है और उसमें पानी की कमी है। यह रिपोर्ट संयुक्त राष्ट्र मरुस्थलीकरण रोकथाम सम्मेलन (यूएनसीसीडी) ने सोमवार को जारी की है। रिपोर्ट के अनुसार, बीते 30 वर्षों में वैश्विक शुष्क भूमि का विस्तार लगभग 43 लाख वर्ग किलोमीटर हुआ है, जो भारत के क्षेत्रफल से लगभग एक तिहाई बड़ा क्षेत्र है। यह धरती का 40 प्रतिशत हिस्सा है।
अरबों लोगों की आजीविका और जीवन पर खतरा
सऊदी अरब के रियाद में यूएनसीसीडी के 16वें सम्मेलन में लॉन्च की गई रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि यदि ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को नहीं रोका जाता है तो इस सदी के अंत तक दुनिया के 3 प्रतिशत आर्द्र क्षेत्र (Wet Lands) शुष्क भूमि (Dry Lands) में बदल सकते हैं। पिछले तीन दशकों में शुष्क भूमि पर रहने वाले लोगों की संख्या दोगुनी होकर 2.3 अरब हो गई है। अगर ऐसा ही चलता रहा तो साल 2100 तक शुष्क भूमि पर रहने वाले लोगों का आंकड़ा 5 अरब को पार कर सकता है। इससे मरुस्थलीकरण बढ़ेगा और जलवायु संबंधी शुष्कता से अरबों लोगों के जीवन और उनकी आजीविका पर खतरा पैदा हो जाएगा।
रिपोर्ट में बताया गया है कि जमीन के सूखा होने की समस्या जिन जगहों पर होगी, उनमें यूरोप का 96 प्रतिशत हिस्सा, पश्चिम अमेरिका के कुछ हिस्से, ब्राजील, एशिया और मध्य अफ्रीका शामिल हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि दक्षिण सूडान और तंजानिया की भूमि का बड़ा हिस्सा सूख जाएगा।
भारत के बड़े हिस्से में होगी सूखे की समस्या
चीन में भी बड़ा हिस्सा गैर-शुष्क जमीन से शुष्क जमीन में स्थानांतरित हो जाएगा। एशिया और अफ्रीका के देश भी इस समस्या से प्रभावित होंगे। कैलिफोर्निया, मिस्त्र, पूर्वी और उत्तरी पाकिस्तान, भारत का बड़ा हिस्सा, चीन का पूर्वोत्तर हिस्सा शुष्क हो जाएगा। साथ ही मध्य पश्चिमी संयुक्त राज्य अमेरिका, उत्तरी वेनेजुएला, उत्तर पूर्वी ब्राजील, दक्षिण पूर्वी अर्जेंटीना, संपूर्ण भूमध्य सागरीय क्षेत्र और काला सागर तट, दक्षिण अफ्रीका का बड़ा हिस्सा और दक्षिणी ऑस्ट्रेलिया भी शुष्क भूमि की समस्या से बुरी तरह प्रभावित होंगे।