Friday, November 22, 2024 at 3:16 PM

दो दिन पहले जिंदा रहते ही अपनी तेरहवीं करने वाले बुजुर्ग का चारपाई पर मिला शव, लोगों में बना चर्चा का विषय

उत्तर प्रदेश के एटा में जीवित रहते अपनी तेरहवीं करने वाले बुजुर्ग की मौत हो गई है। उन्होंने दो दिन पहले ही अपनी तेरहवीं की थी। इसमें सात सैकड़ा से अधिक लोगों को खाना खिलाया था। अब दो दिन बाद ही उनकी मौत हो गई तो लोगों में चर्चा का विषय बन गया। लोगों में तरह तरह की बातें होती रहीं। ग्रामीण आपस में बात करते रहे कि शायद उन्हें अपनी मौत का पहले से ही आभास हो गया था। पुलिस ने शव को पोस्टमार्टम के लिए भेजा है।

बताया गया कि मंगलवार की शाम हाकिम की तबीयत खराब हो गई थी। इस पर उन्होंने दवा ली थी। आराम होने पर रात को सो गए। सुबह नहीं उठे। रोजाना की भांति आज भी लोग आग जला रहे थे। लोगों ने हाकिम को उठने की आवाज लगाई। लेकिन, वह नहीं उठे। रजाई हटाकर देखने पर उन्हें मृत पाया गया। उनके भाई भतीजे शव को घर पर ले गए। उधर, सूचना पर पहुंची पुलिस ने शव को कब्जे में ले लिया। परिजन से बात करके जानकारी ली।

यह है पूरा मामला
सकीट थाना क्षेत्र के ग्राम मुंशीनगर निवासी 70 वर्षीय हाकिम सिंह ने कहा था कि उनको अपनों से कोई आस नहीं है। उन्हें नहीं लगता कि मृत्यु के बाद अपने कोई आयोजन कराएंगे। इसे लेकर हाकिम सिंह ने 15 जनवरी को खुद ही अपना तेरहवीं संस्कार और मृत्यु भोज कराया। इस तेरहवी संस्कार और मृत्यु भोज कार्यक्रम में गांव के लोग भी बिना झिझक पहुंचे। सैकड़ों लोगों ने भोजन प्राप्त किया। ब्राह्मणों को बुलाकर विधि-विधान के साथ हवन-यज्ञ और तेरहवीं संस्कार की सभी रस्में अदा की गईं।

हाकिम सिंह ने कहा था कि उनके कोई पुत्र-पुत्री नहीं है। परिवार में भाई-भतीजों ने घर और जमीन पर कब्जा कर लिया। वे लोग उनके साथ मारपीट करते हैं। ऐसे में भरोसा नहीं हैं कि मृत्यु होने के बाद वे लोग कुछ करेंगे। सोमवार सुबह तबीयत बिगड़ी तो मन में आया कि अपने सामने ही पंडितों और परिचितों को मृत्युभोज कराएं। इसमें करीब 700 लोग भोज करने पहुंचे।

साधु रूप में बिता रहे थे जीवन
उन्होंने बताया था कि कार्यक्रम की व्यवस्था अपनी जमीन बेचकर की है। अपने सामने ही लोगों को मृत्युभोज कराकर अपने मन में कोई बोझ नहीं रखना चाहते। सभी को भोज कराकर बहुत प्रसन्नता हो रही है। बताते चलें दें कि हाकिम सिंह को विवाह के लंबे समय बाद कोई संतान नहीं हुई थी। इसके बाद उनकी पत्नी भी छोड़कर चली गईं। तबसे वह साधु बाबा के रूप में जीवन बिता रहे थे।

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